वीडियो जानकारी: 08.02.2020, विश्रांति शिविर, ऋषिकेश, उत्तराखंड
प्रसंग:
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥6॥
भावार्थ -
जो मनुष्य कर्मेन्द्रियों को तो वश में करता है, किन्तु मन से इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, ऐसा मूर्ख जीव मिथ्याचारी कहलाता है।
~ श्रीमद्भागवद्गीता अध्याय - 3
~ क्या मन को नियंत्रित किया जा सकता है?
~ क्या मन को संयमित किए बिना कर्मेन्द्रियों को वश में करना संभव है?
~ उपर्युक्त श्लोक में श्री कृष्ण किसको मिथ्याचारी कह रहे हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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